तुम्हारा प्रेम ।

#lovepoetry #repost

मेरे एकांत में भी तुम्हारा प्रेम,

मेरे कलेजे का द्वार खटखटा हीं देता है,

कई बार इजाजत ना भी दूँ तो,

वो मेरे सिरहाने आकर बैठ जाता है,

कभी मुझे अपलक निहारता है,

तो कभी केशों में उँगलियाँ फिरा जाता है,

क्यों पढ लिया था तुमने मुझे किसी किताब की तरह?

क्या कंठस्थ करने के लिए और कुछ नहीं था तुम्हारे पास?

मेरे हर वाक्य हर शब्द की तह तक जाना,

हर शब्द के पहले के शब्द को जान लेना,

मेरी ख़ामोशी को पढ लेना वो भी खामोशी से,

जतन करती हूँ बहुत अगर इजाजत ना भी दूँ तो तुम्हारा प्रेम मेरे कलेजे का द्वार खटखटा हीं देता है ।

Published by Aradhana Singh

Poet by heart by soul

7 thoughts on “तुम्हारा प्रेम ।

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